लॉकडाउन में सरकार जरुरी सामानों की आपूर्ति के लिए हर संभव प्रयास कर रही है, जिससे रोजमर्रा की चीजों को लोगों तक पहुंचने में कोई समस्या न हो, बावजूद इसके राजमार्गों पर सामान से लदे ट्रकों के फंसे होने की तस्वीर लगातार सामने आ रही है।
भारत के ट्रक ड्राइवर्स इस मुश्किल समय में आपकी सहायता मांग रहे हैं। आज ही अपना योगदान दें: https://bit.ly/2RweeKH
देश में लगभग 25 लाख कॉमर्शियल व्हीकल हैं, लेकिन कोविड 19 के इस संकटकाल में महज 15 प्रतिशत कॉमर्शियल व्हीकल सड़कों पर है। इससे साफ पता चलता है कि लॉकडाउन का खामियाजा सबसे ज्यादा ऑटोमोबाइल सैक्टर को उठाना पड़ रहा है।
सबसे खराब स्थिति ये है कि 18,000 कारों में से 1,500 कार, 20,000 दो पहिया वाहनों में से 2,000 दो पहिया वाहनों को कंपनियों द्वारा ऋण न चुकाने के कारण वापस जब्त करना पड़ा है।
इतना ही नहीं मांग में कमी और बंद पड़े वाहनों के चलते भाड़े में बढ़ोतरी हो गई है, जिस कारण काम लगभग बंद पड़ा है। काम न होने के कारण तमाम ट्रांसपोटर्स की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। ट्रांसपोटर्स का कहना है कि सिमेंट, स्टील और कार जैसे सामानों की आपूर्ति बंद होने के कारण ज्यादातर कॉमर्शियल व्हीकल राजमार्गों पर खड़े हैं।
ऐसे में ट्रांसपोटर्स की आमदनी पर सीधा-सीधा इसका असर हुआ है, और वे अपने वाहनों की ईएमआई देने में असमर्थ हैं। इसका परिणाम उन्हें लगातार बैंकों से फोन आ रहे हैं और उनकी गाड़ी जब्त की जा रही है।
लोन न चुकाने के मामलों की बात करें तो कॉमर्शियल व्हीकल पहले से हीं खराब दौर से गुजर रहा है। लोन के गणित को समझें तो कॉमर्शियल व्हीकल के लिए 90 प्रतिशत लोन ग्राहक गैर बैंकिंग संस्था से लेती है।
ट्रक के लिए ग्राहक 3 से 30 लाख तक के लोन लेते हैं, जिसमें से 95-100 प्रतिशत बैंक या वित्तीय संस्था देती है। ऐसे में अगर ग्राहक लोन की लागत चुकाने में असमर्थ होता है तो वाहन जब्त करने के अलावा बैंकों के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं होता है।
ऐसे हालात में मजबूरन ड्राईवरों को अपना व्यवसाय बदलता पड़ता है, और अधिक पैसे देने के बावजूद ट्रांसपोटर्स को ड्राईवर नहीं मिलते हैं।
हालांकि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने जो लोन भुगतान की सीमा बढ़ाने का विकल्प दिया है, उससे ट्रांसपोटर्स को जरुर थोड़ी राहत मिली है। लेकिन वो चाहते हैं कि इसे कम से कम सितंबर तक बढ़ाया जाए। यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो ट्रांसपोटर्स फाइनैंसर्स को री-पेमेंट करने में असमर्थ होंगे।
वित्तीय संस्था का एक अनुमान है कि लोन न चुकाने की स्थिति में लगभग 50,000 ट्रक जब्त किए जाएंगे और खरीददार न मिलने के कारण ये यार्ड में पड़े रहेंगे। इस तरह की स्थिति ट्रांसपोटर्स सहित वित्तीय संस्थाओं के लिए भी घातक है।
ऐसी स्थिति से बचने के लिए टाटा मोटर्स फाइनेंस ने विकल्प तलाशने भी शुरु कर दिए हैं, उसने बिल में छूट, टर्म लोन का पुनर्निर्धारण, निजी इक्विटी फंडिंग, कार्यशील पूंजी समाधान और पट्टे के विकल्प देने पर भी विचार शुरु कर दिए हैं।